Monika garg

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लेखनी कहानी -13-May-2022#नान स्टाप चैलेंज # एक हजारों मे मेरी बहना है

बस आ चुकी थी। जल्दी से बस में चढ़ा तो देखा बस करीब करीब खाली ही थी।

लाजपत नगर से जनकपुरी तक की यात्रा, खड़े खड़े तो बड़ी मुश्किल होती। बैठने के लिए सीट मिल गयी थी तो अच्छा सा लग रहा था।

अच्छी हवा आ रही थी, तो पता ही नहीं चला कब आँख लग गई।

किसी के गाने के आवाज़ से आँख खुली। देखा के बस मेडिकल से गुज़र रही थी।

मैंने पलटकर पीछे की ओर देखा, के ये गा कौन रहा है।

एक १२ -१३ साल का लड़का था, हारमोनियम पकड़ा हुआ। और उसके साथ एक छोटी से बच्ची, करीब ४-५ साल की।

उसकी आवाज़ में मधुरता थी। संगीत के शौक़ीन था इसलिए अपने आप को रोक न पाया।

मै उठकर उसके पास जाकर बैठ गया।

वो जो गीत गा रहा था, वह एक मशहूर चलचित्र "धड़कन" का था। गीत के बोल बड़े अच्छे थे, "दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है।"

मैंने उसकी तरफ देखा। वो अपने गीत में मगन था। ऐसे लग रहा था जैसे वो उस गीत को जी रहा हो।

जब गाना ख़त्म हुआ तो उसने मेरी तरफ देखा। मैंने जेब से बचे हुए १९ रुपये निकाले और उसमे से ५ रुपये उसे दे दिए और कहा, "यार, एक बार फिर सुनाओगे।"

"ज़रूर भैय्या", उसने कहा और फिर से वही गीत गाने लगा।

बस में मुझे मिलाकर केवल ३ यात्री थे और फिर बस का ड्राइवर और कंडक्टर।

सब गीत का आनंद ले रहे थे।

जब उस लड़के ने गाना ख़त्म किया, तो मैंने पुछा, "तुम्हारी बहन है क्या?"

उसने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ भैय्या। बहन ही कह लीजिये।"

"कह लीजिये का क्या मतलब है", मैंने पुछा।

मुस्कुराते हुए उसने पास बैठे कंडक्टर के तरफ देखा।

मुझे कुछ समझ नहीं आया। इतने में बस, स्टॉप पर पहुँच गयी। कंडक्टर ने आवाज़ दिया, "मेडिकल आ गया।"

बस में कोई था नहीं, पर वह आदत से मजबूर था।

बस रुकी और वह लड़का उतर गया। मैं अभी मेरे सवाल के जवाब का इंतज़ार कर ही रहा था।

मैंने बाहर के तरफ खिड़की से देखा। वह आगे चल रहा था और उसके पीछे, उसके शर्ट का कोना पकडे उसकी बहन चल रही थी।

देखकर ऐसे लग रहा था जैसे के वो उसका

ही अंश हो।

मैंने कंडक्टर साहेब के तरफ पलटकर देखा। वह मेरी आंखों में छिपे सवाल को समझ गए थे।

"अरे साहेब, बड़ी लम्बी कहानी है", वो बोले।

"कुछ साल पहले, किसीने इस बच्ची को सरोजिनी नगर बस स्टॉप पर छोड़ दिया था। बहुत छोटी थी वो तब।"

"इसके पिताजी वहीं से बस लेते थे। वह

पार्लियामेंट में माली का काम करते थे। खुशहाल परिवार था", कहते हुए कंडक्टर साहब ड्राइवर के तरफ देखे।

ड्राइवर ने आँखों से कुछ इशारा किया।

कंडक्टर साहब बोले, "अरे कोई नहीं मनेश्वर, यह कौनसे केस करने वाले है।"

सुनकर मैं कुछ हैरत में पद गया था।

फिर कंडक्टर साहेब बोले, "क्या कहूँ साहब, इसके पिताजी ने उस बच्चे को रख लिया। हम सब ने मिलकर ही ये फैसला लिया। उस समय हमारा रुट वही होता था और हमारा बस ही उनका रोज़ का होता था।"

"पर यह तो लीगल नहीं है", मैंने कहा।

"लीगल तो नहीं है साहब। मगर फिर ऐसे तो कई सारी चीज़ें लीगल नहीं है। पर वह सब भी होता है। और फिर यह तो अच्छी बात थी। इसलिए हमने भी थोड़ा इललीगल होने दिया।"

मै मुस्कुराया।

"फिर क्या हुआ", मैंने पुछा।

"सब कुछ ठीक चल रहा था। वह उस बच्ची को बड़े नाज़ों से पाल रहे थे। उन लोगों ने राजकुमारी जैसे रखा था उसे।"

"फिर?", अब मुझे जिज्ञासा होने लगी थी।

"फिर क्या साहेब, भगवान् को कुछ और ही 

मंज़ूर था। इसके पिताजी पार्लियामेंट अटैक में चल बसे और इसकी माँ सदमे में बीमार हो गयी। और सारा बोझ इसके कंधे पे आ गया।"

"पर लड़का खुद्दार है साहेब। किसी से एक रुपये की मदद नहीं लेता। सब कुछ खुद सम्हाल लिया है।"

"गायक बनना चाहता था, बेचारा। अब ऐसे बसों में गाता है।"

बस का चलने का समय हो गया था।

मैं बहार की ओर देख रहा था।

"पता है साहब, उसकी बहन को सिर आँखों पे रखता है वो। पढ़ाता है, सिखाता है। कहता है डॉक्टर बनाऊंगा", बोलकर कंडक्टर साहब रुक गए।

"पर वह करता क्या है", मैंने पुछा।

मुस्कुराते हुए कंडक्टर साहब बोले, "सुबह ५ बजे से लेकर बारह बजे तक रेढ़ी लगाकर सब्ज़ी बेचता है। फिर २-३ घंटे ऐसे बसों में गाना जाता है। फिर शाम को नौ बजे तक चाट बेचता है। और रात बारह-एक बजे तक पढता है।"

"अरे साहब, लड़का दसवी में फर्स्ट डिवीज़न आया है। सोचिये", कहकर कंडक्टर साहेब बाहर देखने लगे।

"बस यह नहीं पता के सोता कब है। पूछते है तो बोलता है, बहना को डॉक्टर बनाकर तब सोऊंगा। मेहनती है साहब", कहकर वह कुछ बोले जा रहे थे।

पर अब मैं कुछ सुन नहीं पा रहा था। मैं उसे और उसकी बहना को दूर ओझल होते देख रहा था और सोच रहा था, "मेरी मुश्किल भी कोई मुश्किल है।"

बस चल पड़ी।

उन दोनों भाई-बहन की छवि दूर भीड़ में विलीन हो गयी थी।

मगर वह चेहरा और वो छवि आंखों में बस सी गयी थी। मैं उठकर बस के सबसे पिछले सीट पर जाकर बैठ गया।

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12 Comments

दशला माथुर

14-Oct-2022 07:02 PM

लाजवाब 👌

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बेहतरीन रचना

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shweta soni

14-Oct-2022 03:45 PM

Very nice

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